कभी वो दिन भी देखे थे
आज दिनांक १५.९.२३ को प्रदत्त स्वैच्छिक विषय पर, प्रतियोगिता वास्ते मेरी प्रस्तुति:
विषय: कभी वो दिन भी देखे थे
कभी वो दिन भी देखें थे,ज़माना सारा अपना था,
आऐ हैं दिन अब ऐंसे, जो दिन गुज़रे वो सपना था।
हैरत होती है मुझको वो सपना कैंसे टूट गया,
हम तो यादों में खोए थे कोई क्योंकर आ कर लूट गया।
कोई समस्या आती थी हम उनको याद करते थे,
वो आ जाते तुरन्त और धीरज हमको देते थे।
निदान खोज समस्या का निवारण उसका कर देते,
अंसुवन भरी इन आंखों से आंसू सारे पोंछा करते।
हर शाम हमारे साथ ही उनकी बीता करती थी,
गीतों की महफ़िल सजती और रात सुहानी होती थी।
मधुर चांदनी रातों मे हम ख़ुशी मे नृत्य किया करते,
थक कर वो एक प्याली चाय की फ़रमाइश करते।
चाय की प्याली पी कर हम भी सोने जाते थे,
वादा कर अगले दिन का वो भी निज घर को जाते थे।
अय ख़ुदा तू इतनी सी गुज़ारिश हमारी कुबूल कर लें,
वह प्यारे दिन हमको लौटा दे फ़िर चाहे और कुछ मत दे।
आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़
Gunjan Kamal
16-Sep-2023 10:35 PM
👏👌
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
16-Sep-2023 10:31 AM
बेहतरीन
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Abhinav ji
16-Sep-2023 07:43 AM
Very nice
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